हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, मुक़ावमत इस्लामी "कताएब सैय्यद अश्शोहदा" के महासचिव हाज अमीन अबू आला़ अलविलाई ने आशूरा के दिनों और हालिया क्षेत्रीय हालात के संदर्भ में एक अहम बयान दिया है। उन्होंने इस्लामी जुम्हूरीया ईरान की ज़ायोनी हुकूमत और अमेरिका की हालिया जारहियत के मुकाबले में हुई कामयाबी को मुक़ावमत (प्रतिरोध) के इतिहास का एक नया अध्याय क़रार दिया।
उन्होंने कहा कि वाक़ेआ-ए-आशूरा हमेशा से आज़ादी, जागरूकता और मुक़ावमत का स्रोत रहा है और आज भी यही रूह मोहावरे-मुक़ावमत को दुश्मन के खिलाफ कामयाबी दिला रही है। उनके मुताबिक, ईरान पर हमला करने का ख्वाब देखने वाला दुश्मन, ईरान की असली ताक़त से हैरान रह गया और उसे पीछे हटने पर मजबूर होना पड़ा।
अबू आला़ अलविलाई ने ज़ायोनी हुकूमत और अमेरिका की तरफ़ से युद्धविराम की पेशकश को उनकी खुली हार का इकरार बताया और कहा कि ईरान की मुक़ावमत-ए-क़ुव्वत (प्रतिरोध की ताक़त) और राष्ट्रीय एकता ने दुश्मन के तमाम मंसूबों (योजनाओं) को नाकाम कर दिया।
उन्होंने ईरान को सिर्फ एक ताक़तवर मुल्क नहीं, बल्कि एक "सभ्यत-संकल्पना (civilizational project)" बताया और कहा कि इसे न तो लोगों के चले जाने से, और न ही साज़िशों से रोका जा सकता है। उनके अनुसार, ईरान ने वैश्विक साज़िश को शिकस्त देकर एक नए दौर की शुरुआत की है, और अब वो क्षेत्रीय ताक़त के संतुलन का केंद्र बन चुका है।
उन्होंने इराक़ के शहीद कमांडर सैय्यद हैदर अल-मूसवी और उनके बेटे की शहादत को ईरान व इराक़ के भाग्य-निर्माता रिश्ते की निशानी बताया और कहा कि यह खून उस संयुक्त संघर्ष का गवाह है जो हज़रत अली (अ.स) और सलमान फ़ारसी (र.ज़) से शुरू हुआ था, शहीद क़ासिम सुलेमानी और अबू महदी अल-मुहंदिस तक पहुंचा, और आज भी जारी है।
आख़िर में उन्होंने कहा,हम आज इस्लामी जुम्हूरीया ईरान के साथ खड़े हैं, और कल इमाम ज़माना अजलल्लाहु फ़रजहु के लश्कर में शामिल होंगे। हमारा रास्ता क़ुद्स की आज़ादी तक जारी रहेगा।
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